03 June, 2013


. . . थोडी कम थी।


एक श्याम और बस तुम थी,
गम नही बस ऑंखें थोडी नम थी।

इश्क के ज़ाम पे ज़ाम पिए जा रथे हम,
कडवाहट नही बस मिठास थोडी कम थी।

अपनीही यादों को लिये जल रहे थे हम,
धूप नही बस छाव थोडी कम थी।

ढलते सूरज की तरह हम भी कही ढल रहे थे,
अंधेरा नही बस रोशनी थोडी कम थी।


अपनीही धुंद में निकल पडे थे की राह पर,
मौत नही जिंदगी थोडी कम थी।
-      अमेय सु. बाळ

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